वास्तु शास्त्र एवं वास्तुदेव की विशेषताएँ – भाग-5
21-सीढियां (सोपान) या झीना):-
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झीने या सोपान की सीढियां हमेशा पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से
दक्षिण की ओर जाने वाली होनी चाहिए | सोपान या झीने का स्थान कभी भी उत्तर-पूर्वी कोने में
नहीं होना चाहिए, ये बहुत ही अशुभ होता है |
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जहाँ तक संभव हो सके झीने या सोपान
वाला भाग हमेशा भवन के दक्षिण या दक्षिण - पश्चिम भाग में होना चाहिए | एवं सीढियां पूर्व से पश्चिम की ओर या उत्तर से दक्षिण की ओर जानी चाहिए |
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सीढियों की शुरुआत उत्तर से
दक्षिण की ओर जाते हुए मध्यवर्ती सीढ़ी तक जाना चाहिए एवं वहां मध्यवर्ती सीढ़ी के बाद दक्षिण से उत्तर की ओर जाना चाहिए एवं उसके बाद फिर उत्तर से दक्षिण
की ओर जाते हुए सीढियों का निर्माण करना
चाहिए , इसी प्रकार से पूर्व से पश्चिम की तरफ जाते हुए मध्यवर्ती सीढ़ी तक पहुँच कर वहां से पश्चिम से पूर्व की
ओर जाना चाहिए | इस प्रकार से सीढ़ियों का निर्माण उत्तम
रहता है|
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एवं सीढियां हमेशा घडी की
दिशा में ही बनानी चाहिए | सीढियों का निर्माण हमेशा विषम संख्या में ही करना
चाहिए ये शुभ रहता है | सीढियां बाहरी हो या अन्दर की हों ,
उन्हें सदैव मध्यवर्ती अवतरण स्थान
तक उत्तर से दक्षिण की ओर तथा
पूर्व से पश्चिम की ओर जाना चाहिए और इसके बाद वे किसी भी दिशा की ओर जा सकती हैं ,
लेकिन उपरी मंजिल पर उन्हें अनुकूल दिशा में समाप्त होना चाहिए |
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सीढ़ियों के नीचे अनाज का भण्डार , स्नानागार, शौचालय, मंदिर, पूजा स्थल,
व्यापारियों की गद्दी, आदि नहीं होनी चाहिये |
सीढ़ियों के नीचे अलमारी, तिजोरी, या धन या आभूषण रखने का स्थान नहीं होना चाहिये | इससे
वास्तु दोष होता है |
22-घर या मकान के आसपास पेड़ पौधों का स्थान:-
· घर या बंगले के आसपास ऐसे वृक्ष नहीं उगाने चाहिये जिसमें से दूध जैसे
पदार्थ निकलते हैं तथा कांटे वाले वृक्ष भी नहीं बोने चाहिये | जैसे बबूल, बेर, आदि |
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मकान के पूर्व दिशा में बरगद का पेड़ , दक्षिण दिशा में पलाश का
पेड़ , उत्तर दिशा में गूलर का पेड़ या वृक्ष तथा पश्चिम
दिशा में पीपल का पेड़ या वृक्ष नहीं होना चाहिये ये अशुभ होता है |
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केला, चंपा ,
जई , केतकी, नारियल,
जामुन, कटहल, लेसवा,
बोर, बिजोरी नींबू , शेलड़ी
का पेड़, पीपला, गुलमोहर बाद, पीपली, आम, कनेर, कैक्टस, जई, ताग, व् अन्य कांटे वाले पेड़ तथा देव वृक्ष आदि घर में या आसपास नहीं लगाने
चाहिये | घर के सामने दूध जैसे दृव्य वाले वृक्ष हो तो दृव्य
की हानि होती है , कांटेदार वृक्ष हो तो शत्रुभय होता है ,
घने फल वाले वृक्ष होतो ख़राब होता है उन्हें घर में नहीं लगाना
चाहिये |
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घर के आगे फूलों की बेल यया अंगूर की बेल उगाकर उन से बना मंडप आदि
बनाना चाहिये | घर में हमेशा तुलसी काली या हरी उगानी चाहिये तथा बेलपत्र,आसोपालव का पेड़ बोरसली का पेड़ ,
पुन्नाग आदि के पेड़ व् अन्य छोटे पौधे घर में उगाने चाहिये |
बड़े पेड़ घर में या आसपास नहीं लगाने चाहिये |
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घर के उत्तर दिशा में कुआँ या बोरिंग , पूर्व दिशा में बड का पेड़ , दक्षिण
दिशा में गुलमोहर और पश्चिम दिशा में
पीपला इस प्रकार से ये चार प्रकार के पेड़
घर के चारों ओर उगाना या लगाना शुभ रहता है |
23-भवन में नवग्रहों का स्थान एवं प्रभाव:-
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वास्तुशास्त्र के अनुसार गृहनिर्माण किया जाता है तब उसके साथ – साथ घर में नवग्रह भी
विराजमान होते हैं | तथा वहां पर रहने वाले लोगों पर अपना
प्रभाव डालते हैं |
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सूर्यदेव का स्थान उत्तर – पूर्व (ईशान कोण ) में पूजा या प्रार्थना कक्ष में होता है एवं ये घर
में रहने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य
एवं नौकरी पर प्रभाव डालते हैं |
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चंद्रदेव का स्थान पूर्व दिशा में स्नानागार या स्नान कक्ष (बाथरूम)
में होता है तथा ये ग्रह स्वामी के यश व् कीर्ति पर प्रभाव डालते हैं |
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मंगल देव अथवा कुज देव का स्थान दक्षिण – पूर्व (आग्नेय कोण ) में
रसोई (किचिन) में होता है एवं ये व्यक्ति के चरित्र , बुद्धि,
धन व् समृद्धि पर प्रभाव डालते हैं
|
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बुध देव का निवास घर के सामने के बरामदे या स्वागत कक्ष या मध्य के
हाल में जहाँ अध्ययन एवं व्यापार के कार्य
होते हैं वहां पर बुध देव का निवास होता है ये व्यक्ति के व्यापार एवं धंधे व् कार्य पर प्रभाव डालते हैं |
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बृहस्पति देव या गुरु का निवास उत्तर दिशा में स्तिथ कोष या उत्तर – पूर्व दिशा (ईशान कोण) जहाँ पर अध्यात्मक व् अन्य तरह
का अध्ययन होता है वहां पर बृहस्पति देव या गुरु का निवास होता है गुरु व्यक्ति के
मान सम्मान पर प्रभाव डालते हैं |
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शुक्र देव का स्थान दक्षिण से लेकर पश्चिम तक के क्षेत्र में जहाँ पर
भोजन कक्ष , प्रसाधन कक्ष या विश्राम कक्ष आदि
में होता है शुक्र व्यक्ति की वाकपटुता
एवं पति,पत्नी के सम्बन्धों व् व्यवहार पर प्रभाव
डालते हैं |
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शनि देव का निवास स्थान पश्चिम या पश्चिम-उत्तर के किनारे पर गौशाला
में होता है शनि देव व्यक्ति की प्रशन्नता
व् अचल संपत्ति व् धार्मिक बुद्धि पर प्रभाव डालता है |
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राहु का स्थान घर के प्रवेश द्वार के दाहिनी तरफ एवं बांयी तरफ केतु का स्थान होता है तथा भवन
के चरों ओर रह कर उसकी रक्षा करते हैं
राहु व्यक्ति की अजेय प्रतिष्ठा एवं मानसिक स्तिथि व् पेट के विकारों पर असर
डालता है तथा केतु सम्पूर्ण पीढ़ी की वृद्धि व् सम्पन्नता पर प्रभाव डालता है|
24-भवन में द्वार (दरवाजे), का शुभ
स्थान:-
घर का मुख्य प्रवेश द्वार ग्रह स्वामी की राशि के अनुसार न होकर या बनाकर दिशा की अनुकूल परिस्तिथि देखकर ही मुख्य द्वार
लगाना चाहिए ,क्योंकि विशेष व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी मकान में तो लोग रहने ही वाले
हैं अतः मकान का मुख्य द्वार हमेशा सही
दिशा देख कर सही जगह पर द्वार लगाना चाहिए, द्वार की सही
स्तिथि निम्न प्रकार से हैं :
उत्तर मुखी भूखंड में द्वार –
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उत्तर – पूर्व कोने में द्वार शुभ
रहता है , सुख समृद्धि व् आर्थिक लाभ देता
है |
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उत्तर – पश्चिम कोने में द्वार अशुभ रहता
है , अस्थिरता व्
अशांति लाता है |
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पूर्व मुखी भूखंड में द्वार –
|
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पूर्व – उत्तर कोने में द्वार शुभ
रहता है
|
ज्ञान व् अच्छा स्वास्थ्य
प्रदान करता है |
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पूर्व – दक्षिण कोने में द्वार अशुभ
रहता है
|
स्वास्थ्य व् उम्र
पर विपरीत प्रभाव डालता है|
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दक्षिण मुखी भूखंड में द्वार -
|
दक्षिण – पूर्व कोने में द्वार
शुभ रहता है, लाभदायक व् समृद्धि दायक रहता
है
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(दूसरा उपद्वारउत्तर या पूर्व में रखें)
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दक्षिण -पश्चिम कोने में द्वार अशुभ रहता है
महिलाओं के
स्वास्थ्य व् आर्थिक हानि होती है
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पश्चिम मुखी भूखंड में द्वार -
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पश्चिम – उत्तर कोने में द्वार शुभ
रहता है सफलता प्रदान करता है |
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पश्चिम – दक्षिण कोने में द्वार – अशुभ रहता है , परुषों का पतन व् आर्थिक हानि पंहुचाता है |
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द्वारों की संख्या हमेशा सम संख्या में ही होनी चाहिए |
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घर में खिडकियों व् रोशनदानों की संख्या भी सम रहनी चाहिए विषम संख्या
में नहीं होनी चाहिए |
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कमरे में दरवाजे व् खिड़कियाँ एक दूसरे के विपरीत दिशा में या आमने – सामने होनी चाहिए |
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अगर भूखंड बड़ा होतो उसमें बने हुए मकान में चरों ओर चार दरवाजे लगाने
चाहिए , ये अति शुभ होते हैं |
मकान में द्वारों(दरवाजों ) की संख्या एवं स्थान :-
मकान में एक द्वार
:
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जब केवल एक ही मुख्य द्वार हो तो उत्तर दिशा अथवा पूर्व दिशा में
सर्वोत्तम रहता है |
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द्वार मकान के मध्य में नहीं होना चाहिये, बल्कि वास्तु के अनुसार
दिए गए स्थान पर होना चाहिये |
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दक्षिण दिशा में एक ही द्वार ठीक नहीं रहता है बल्कि एक उप द्वार
उत्तर या पूर्व दिशा में अवश्य होना चाहिये |
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इसी प्रकार पश्चिम दिशा में भी एक द्वार होतो दूसरा उप द्वार पूर्व या
उत्तर दिशा में अवश्य होना चाहिये | ये शुभ रहता है |
मकान में दो द्वार :
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जब दो द्वार लगाने हों तो इस प्रकार से होने चाहिये उत्तर में मुख्य
द्वार एवं पूर्व में उप द्वार होना चाहिये|
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पूर्व में मुख्य द्वार होतो
उप द्वार बाकी किसी भी दिशा में हो सकता है |
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दक्षिण में मुख्य द्वार होतो उपद्वार पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा
में ही होना चाहिये पश्चिम दिशा में उप द्वार नहीं होना चाहिये |
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पश्चिम में मुख्य द्वार हो तो पूर्व दिशा में उप द्वार होना चाहिये |
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पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार होतो पूर्व दिशा के अलावा अन्य किसी भी
दिशा में उप द्वार नहीं होना चाहिये |
मकान में तीन द्वार
:
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जब तीन द्वार हों तो दक्षिण या पश्चिम को छोड़कर अन्य तीन दिशाओं में तीन द्वार अर्थार्त तीनों दिशाओं में एक – एक द्वार करके तीन द्वार
लगा सकते हैं | ये शुभ रहता है |
मकान में चार द्वार :
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जब चार द्वार लगाने हों तो चारों दिशाओं में एक -एक द्वार लगाना शुभ
·
रहता है |
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द्वार को कभी भी मध्य में नहीं लगाना चाहिये , ऐसा करना बहुत ही अशुभ
होता है |
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ऊपर की मंजिल के द्वारों को भी नीचे की मंजिल के द्वारों के अनुरूप
होना चाहिये |
आमने-सामने के दो अलग :
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अलग मकानों के मुख्य द्वारों को एक-दूसरे के ठीक सामने नहीं लगाना
चाहिये ये शुभ नहीं रहता है इससे द्वार वेध लगता है |
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आवासीय मकानों में द्वारों की ऊँचाई उनकी चौड़ाई से दुगनी या तीन गुनी
से ज्यादा या कम नहीं होनी चाहिये |
मकान में शहतीर व् स्तम्भ तथा द्वार वेध-
25-वास्तु अनुसार वेध दोष :-
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लोग मंदिर के निकट भवन का होना अच्छा मानते हैं | किन्तु वास्तुशास्त्र के
अनुसार मंदिर के भवन की कुछ स्तिथियाँ दोषपूर्ण मानी जाती हैं |
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भवन की ऊँचाई से दोगुनी दूरी तक भवन के निकट, सामने अथवा पीछे मंदिर
नहीं होना चाहिए |
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यदि भवन के सामने मंदिर है तो उसकी छाया भवन पर नहीं पड़नी चाहिए |
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भवन के मुख्य द्वार के सामने मंदिर नहीं होना चाहिए |
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भवन के निकट या मुख्य द्वार के सामने कीचड़ नहीं होना चाहिए |
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पूर्व, उत्तर व ईशान कोण में कोई चट्टान या खम्भा नहीं होना
चाहिए |
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भवन के निकट दक्षिण या पश्चिम दिशा में कोई नदी , नाला नहीं होना चाहिए |
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भवन के निकट वृक्ष इतनी दूरी पर होने चाहिए, कि उनकी छाया भवन पर न
पड़े |
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भवन के मुख्य द्वार के सामने कोई बाधा नहीं होनी चाहिए | जैसे –
दीवार, खम्भा, कब्र, कोई गली आदि| परन्तु यही इन बाधाओं के बीच में कोई
मार्ग है तो इनका प्रभाव खत्म हो जाता है |
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कान में शहतीर और स्तम्भ तथा वृक्षों की संख्या भी सम यानि २,४,६,८ आदि की तरह होनी चाहिये
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तथा स्तम्भ एवं शहतीर चोकोर या आयताकार ही होना शुभ रहता है ये गोल या
बहु भुजाकार जैसे नहीं होने चाहिये ऐसा
होना शुभ नहीं होता है |
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कोशिश यह करनी चाहिए की मकान में शहतीर या स्तम्भ कमरे के बीच में
नहीं आना चाहिए ये अशुभ रहता है | कमरे में स्तम्भ अवरोध उत्पन्न करता है इसलिए स्तम्भ
को कमरे में न होकर दीवार के अन्दर आना चाहिए इस प्रकार से मकान का नक्शा तैयार
करना चाहिए |
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मकान में स्तम्भ(पिलर) या बीम
आदि को मकान की ऊंचाई व् आकार के हिसाब से सही आकर का बनाना चाहिए जिससे
भवन में किसी भी प्रकार की कमजोरी नहीं रहती है |
द्वार वेध :
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द्वार की शुभ स्तिथि के लिये द्वार वेध का ध्यान रखना भी जरूरी होता
है | भवन की ऊँचाई की दुगनी दूरी के अन्दर किसी भी प्रकार का द्वार वेध नहीं
होना चाहिये |
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द्वार वेध जैसे की किसी भी प्रकार का वृक्ष , कुआँ , दीवार, जलधारा,नहर, मंदिर, लट्ठा या पोल द्वार के सामने नहीं होना चाहिये |
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द्वार या दरवाजे के सामने किसी भी प्रकार का अवरोध अच्छा नहीं रहता है
| उक्त प्रकार का अवरोध या वेध अगर मकान के सामने की सड़क के दूसरी तरफ होतो
इतना प्रभावशाली नहीं होता है |
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भवन के द्वार के सामने किसी भी प्रकार का कचरा भी नहीं होना चाहिए |
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भवन के सामने किसी भी प्रकार का मंदिर भी शुभ नहीं रहता है |भवन की निर्माण के समय
द्वार वेधों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए |