वास्तु शास्त्र एवं वास्तुदेव की विशेषताएँ – भाग-3
11-शयन कक्ष (बैड रूम)
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12- बैठक कक्ष कक्ष / मेहमान कक्ष (ड्राइंगरूम)
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13-भोजन कक्ष (डाइनिंग रूम
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14-भंडारण कक्ष (स्टोरेज रूम)
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15-रसोई (किचिन)
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11-शयन कक्ष (बैड रूम):-
बेडरूम आपका वह स्थान जहां आप अपना सबसे ज्यादा समय बिताते हें| पुरे दिन काम करने के बाद यह
स्थान आपके शरीर और दिमाग को आराम और शांति प्रदान करता है| यहाँ
वास्तु शास्त्र के अनुसार शयन कक्ष के स्थान और चीजों के रखरखाव के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं |
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शयन कक्ष भवन के दक्षिण – पश्चिम किनारे या क्षेत्र में होना चाहिये अगर सभी शयन
कक्ष इस क्षेत्र में बनाना संभव नहीं हो तो
बाकी शयन कक्षों को पूर्व, उत्तर – पूर्व , दक्षिण - पूर्व क्षेत्र में बनाना चाहिये |
ये स्थान बच्चों व् युवा लोगों के लिये ठीक रहता है |
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उत्तर – पश्चिम दिशा व् पूर्व दिशा में शयन कक्ष बनाने से
बचना चाहिये, क्योंकि ये दिशाएं शयन कक्ष के लिये इतनी शुभ
नहीं रहती हैं |
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शयन कक्ष में हमेशा पलंग पर दक्षिण
दिशा में ही सिर करके सोना चाहिये | इससे दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है | बच्चे पूर्व दिशा में सिर करके सो सकते हैं , पूर्व
दिशा में सिर करके सोने से ज्ञान की प्राप्ति होती है | सिर
पश्चिम की दिशा में करके सोने से दुःख एवं
शोक की प्राप्ति होती है तथा उत्तर की ओर
सिर करके सोने से मृत्यु की प्राप्ति होती है |
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वैसे भी ये एक वैज्ञानिक कारण भी है क्योंकि उत्तर दिशा में उत्तरी
पोल धनात्मक ऊर्जा होती है एवं दक्षिण
दिशा में दक्षिणी पोल होने के कारण ऋणात्मक
ऊर्जा होती है , इसी प्रकार से हमारे शरीर में भी सिर की तरफ ऋणात्मक
ऊर्जा होने के कारण तथा पैरों की तरफ धनात्मक ऊर्जा होने के कारण हमको किसी भी
धनात्मक या ऋणात्मक ऊर्जा का आवेश वहां वहन नहीं करना पड़ता है अन्यथा
हमें सोने में बेचैनी तथा अनिद्रा का अहसास होगा तथा अच्छी नींद नहीं ले
सकते हैं अतः सोने की आदर्श स्तिथि दक्षिण
की तरफ सिर करके सोना ही है अतः हमें
हमेशा दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिये |
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कमरे में पलंग या बिस्तर लगाते समय पूर्व व् उत्तर की ओर अधिक जगह
छोड़नी चाहिये एवं सुबह सोकर उठने के बाद पहले अपना दांया पैर फर्श पर स्पर्श करना
चाहिये तथा पूर्व की ओर चलना चाहिये | इससे हमें अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है एवं
दिनभर मंगलमय रहता है |
संयुक्त परिवार में कहां हो शयन कक्ष ?:-
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वास्तु शास्त्र के अनुसार गृहस्वामी ,गृहस्वामिनी को दक्षिण
दिशा में शयन करना चाहिए। गृह स्वामी, गृह स्वामिनी या कोई
अन्य स्त्री यदि दक्षिण दिशा में शयन व निवास करती है तो वह प्रभावशाली हो जाती
है।
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अतः परिवार की मुखिया स्त्री को दक्षिण दिशा में शयन करना चाहिए।
कनिष्ठ स्त्रियां , देवरानी आदि को इस दिशा में शयन नहीं करना चाहिए। जो
स्त्रियां अग्नि कोण में शयन व निवास करती हैं उनका दक्षिण दिशा में शयन करने वाली
स्त्रियों से मतभेद रहता है।
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अग्नि कोण में युवक व युवती अल्प समय के लिए शयन कर सकते हैं। अग्नि
कोण अध्ययन व शोध के लिए शुभ है।
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भवन के वायव्य कोण में जो स्त्रियां शयन व निवास करती हैं उनके मन में
उच्चाटन का भाव आने लगता है और वे अपने अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती हैं।
अतः भवन के इस भाग में कन्याओं को शयन कराना शुभ होता है क्योंकि उन्हें ससुराल का
घर संवारना होता है।
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नई दुल्हन या बहू को यह स्थान शयन हेतु कदापि उपयोग में नहीं लाना
चाहिए। यदि कोई पुरुष वायव्य कोण में अधिक समय शयन करता है तो उसका मन परिवार से
उचट जाता है और वह अलग होने की सोचता है।
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यदि परिवार में दो या दो से अधिक बहुएं हों तो वास्तु शास्त्र के
नियमों के अनुसार शयन व निवास के स्थान का चयन कर स्नेह, प्रेम व तालमेल बनाए रखा
जा सकता है। भवन का सबसे शक्तिशाली भाग दक्षिण दिशा होती है, अतः इस भाग में सास को सोना चाहिए। अगर सास नहीं हो तो परिवार की बड़ी बहू
को सोना चाहिए। उससे छोटी को पश्चिम दिशा में, उससे छोटी को
पूर्व दिशा में और उससे छोटी बहू को ईशान कोण में शयन करना चाहिए।
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दक्षिण में शयन करने वाली स्त्री को पति के बायीं ओर अग्निकोण में शयन
करने वाली स्त्री को दायीं ओर शयन करना चाहिए। गृहस्थ पत्नी को पति की बायीं ओर
सोना चाहिए। परिवार की मुखिया सास या बड़ी बहू को पूर्व या ईशान कोण में शयन नहीं
करना चाहिए।
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वृद्धावस्था में या अशक्त हो जाने की स्थिति में ईशान कोण में शयन
किया जाता सकता है किंतु अग्निकोण में शयन नहीं करना चाहिए। अग्निकोण में अग्नि
कार्य से स्त्रियों की ऊर्जा का सही परिपाक हो जाता है। शयन कक्ष का बिस्तर अगर
डबल बेड हो और उसमें गद्दे अलग-अलग हों तथा पति-पत्नि अलग-अलग गद्दे पर सोते हों
तो उनके बीच तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है और आगे चलकर अलग हो सकते हैं।
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बच्चों का कमरा- उत्तर – पश्चिम या पश्चिम में होना चाहिए
और
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मेहमानों के लिए कमरा- (गेस्ट
बेड रूम) उत्तर पश्चिम या उत्तर – पूर्व की ओर होना चाहिए |
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अविवाहित बच्चों या मेहमानों- के सोने
के लिए पूर्व दिशा में बने कमरा इस्तेमाल
किया जा सकता है |
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उत्तर – पूर्व दिशा में देवी – देवताओं का स्थान है इसलिए इस
दिशा में कोई बेडरूम नहीं होना चाहिए | उत्तर– पूर्व- में बेडरूम होने से
धन की हानि , काम में रुकावट और बच्चों की शादी में
देरी हो सकती है |
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दक्षिण– पश्चिम- का बेडरूम स्थिरता और महत्वपूर्ण मुद्दों को
हिम्मत से हल करने में सहायता प्रदान करता है |
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दक्षिण – पूर्व- में शयन कक्ष अनिद्रा , चिंता , और
वैवाहिक समस्याओं को जन्म देता है | दक्षिण पूर्व दिशा अग्नि
कोण हें जो मुखरता और आक्रामक रवैये से
संबंधित है | शर्मीले और डरपोक बच्चे इस कमरे का उपयोग करें और
विश्वास प्राप्त कर सकते हैं | आक्रामक और क्रोधी स्वभाव
के जो लोग है इस कमरे में ना रहे |
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उत्तर – पश्चिम- दिशा वायु द्वारा शासित है और आवागमन से संबंधित
है | इसे
विवाह योग्य लड़किया के शयन कक्ष के लिए एक अच्छा माना गया है | यह मेहमानों के शयन कक्ष लिए भी एक अच्छा स्थान है |
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घर के मध्य भाग में -शयन कक्ष
घर के मध्य भाग में नहीं होना चाहिए, घर के मध्य भाग को वास्तु में बर्हमस्थान
कहा जाता है | यह बहुत सारी ऊर्जा को आकर्षित करता है जोकि
आराम और नींद के लिए लिए बने शयन कक्ष के लिए उपयुक्त नहीं है |
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बेड रूम में रखे सामान के लिए उपयुक स्थान:
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सोते समय
एक अच्छी नींद के नंद के लिए सिर पूर्व या
दक्षिण की ओर होना चाहिए |
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वास्तु
के सिद्धांतों के अनुसार, पढ़ने और लिखने की जगह पूर्व या
शयन कक्ष के पश्चिम की ओर होनी चाहिए | जबकि पढाई करते समय
मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए |
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ड्रेसिंग
टेबल के साथ दर्पण पूर्व या उत्तर की दीवारों पर तय की जानी चाहिए |
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अलमारी
शयन कक्ष के उत्तर पश्चिमी या दक्षिण की ओर होना चाहिए | टीवी, हीटर
और एयर कंडीशनर को दक्षिण पूर्वी के कोने में स्थित होना चाहिए |
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बेड रूम
के साथ लगता बाथरूम, कमरे के पश्चिम या उत्तर में होना चाहिए |
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दक्षिण – पश्चिम , पश्चिम
कोना कभी खाली नहीं रखा जाना चाहिए| यदि आप कोई सेफ या तिजोरी, बेड रूम में रखना चाहे
तो उसे दक्षिण कि दिवार के साथ रख सकते हें, खुलते समय उसका
मुंह धन की दिशा, उत्तर की तरफ खुलना चाहिए|
12- बैठक कक्ष / मेहमान कक्ष (ड्राइंगरूम) :-
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बैठक का कमरा हमेशा घर के उत्तर -पूर्व भाग में बनवाना चाहिए | उत्तर या पूर्व के भाग
में भी बैठक अथवा मेहमान कक्ष बनवा सकते हैं |
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बैठक कक्ष या मेहमान कक्ष में फर्नीचर चोकोर या आयताकार होना चाहिए
तथा पश्चिमी या दक्षिणी भाग में स्तिथ होना चाहिए |
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जिससे बैठने वाले का मुंह
पूर्व या उत्तर में होना चाहिए , ये अति शुभ रहता है | मेहमान
कक्ष में हरा या नीला या सफेद रंग करना चाहिए |
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बैठक कक्ष का द्वार उत्तर दिशा में अति शुभ रहता है मगर पूर्व दिशा
में भी द्वार रखा जा सकता है | परन्तु अन्य दिशा में बैठक कक्ष का द्वार नहीं रखना
चाहिए | बैठक कक्ष में टेलीविजन रखना हो तो उसको अग्नि कोण या दक्षिण की दिशा
में रखना चाहिए |
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रूम कूलर या वातानुकूलित यन्त्र को कक्ष की पश्चिमी या पश्चिमी – उत्तरी दीवार या भाग में
लगाना चाहिए | बैठक कक्ष की सामने की दीवार खाली नहीं रखनी
चाहिए उस पर कोई अच्छी सी प्राकृतिक द्रश्य आदि की तस्वीर लगानी चाहिए |
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बैठक कक्ष में बंद घडी नहीं लगानी चाहिए तथा घडी को दक्षिणी दीवार में नहीं लगानी चाहिए
| बैठक कक्ष का ढलान उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए |
13-भोजन कक्ष (डाइनिंग रूम :-
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भोजन कक्ष हमेशा मकान में पश्चिमी भाग में ही बनाना चाहिए , तथा विशेष परिस्थितियों
में पूर्व या उत्तरी भाग में भी भोजन कक्ष बनवा सकते हैं |
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भोजन कक्ष का दरवाजा मकान के बाहरी मुख्य दरवाजे के सामने नहीं होना
चाहिए | एवं हो सके तो भूतल मंजिल ही बनाना चाहिए | अगर
रसोई मकान के भूतल मंजिल पर बनी हो तो भोजन कक्ष भी भूतल मंजिल पर ही बनाना चाहिए |
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भोजन कक्ष में भोजन की टेबल चोकोर या आयताकार होनी चाहिए , तथा भोजन करने वालों का
मुंह पूर्व या पश्चिम की ओर होना चाहिए |
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घर के मुखिया का मुंह भोजन करते समय पूर्व की ओर होना चाहिए | भोजन कक्ष में हो सके तो
टॉयलेट (शौचालय) का निर्माण नहीं करवाना चाहिए | तथा सिंक को
उत्तर – पूर्व के कोने में लगवाना चाहिए |
14-भंडारण कक्ष (स्टोरेज रूम) :
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भंडारण कक्ष मकान में हमेशा उत्तर – पश्चिम भाग में ही बनाना चाहिए | विशेष
परिस्थितियों में दक्षिण – पश्चिम भाग में भी स्टोरेज कक्ष
बना सकते हैं |
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कक्ष में रसोई गैस एवं ज्वलनशील वस्तुएं एवं इलेक्ट्रिकल सामान को दक्षिण – पूर्व भाग में रखना चाहिए
| तथा स्टोरेज कैबिनेट पश्चिमी एवं उत्तरी भाग में बनवानी
चाहिए |
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स्टोरेज कक्ष या स्टोर रूम का दरवाजा दक्षिण-पश्चिम कोने में नहीं होना चाहिए | कक्ष में कभी भी फालतू
एवं रद्दी वस्तुओं का ज्यादा दिन तक
भंडारण नहीं करना चाहिए |
15-रसोई (किचिन):-
रसोईघर किसी भी घर का महत्वपूर्ण स्थान होता है। यही वह जगह होती है, जहां गृहणी अपना अधिकांश
समय व्यतीत करती है और अपने परिवार के लिए प्यार भरा पौष्टिक भोजन बनाती है। चूंकि
रसोईघर खाना बनाने से लेकर खाना खाने, साफ-सफाई करने और
कभी-कभी गृहणी के लिए सुस्ताने का स्थान भी होता है, लिहाजा
इसके लिए सही स्थान का चयन करना वाकई कठिन कार्य है।
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रसोई हमेशा मकान में दक्षिण – पूर्व (अग्नि कोण ) में ही बनाना चाहिए , ये स्थान रसोई के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है |
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खाना पकाने का स्लैब रसोई की पूर्वी दीवार की तरफ होना चाहिए , क्योंकि रसोई के अग्निकोण
में पूर्व की और मुंह करके खाना पकाना शुभ रहता है |
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रसोई में स्लैब को उत्तर की और बढाया जा सकता है एवं रसोई में सिंक
हमेशा रसोई के ईशान कोण में होना चाहिए या फिर उत्तर की और होना चाहिए |
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अगर विशेष कारणों से रसोई अग्निकोण में बनाना संभव न हो सके तो इसे
उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र में भी बना सकते हैं , मगर उस रसोई में भी स्लैब
को पूर्वी दीवार की तरफ ही बनाना चाहिए एवं खाना पकाते समय रसोइये का मुंह पूर्व
की और होना चाहिए तथा चूल्हा दक्षिण-पूर्व
कोने में ही होना चाहिए |
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अगर रसोई मकान के बहार की तरफ बनाना हो तो भी रसोई को दक्षिण – पूर्व (अग्नि कोण) में ही
बनाना चाहिए एवं उसका फर्श मकान के फर्श से थोडा ऊंचा होना चाहिए तथा इसमें भी
स्लैब अथवा प्लेटफार्म पूर्व की दीवार की तरफ ही होना चाहिए तथा रसोइये का मुंह
पूर्व की तरफ होना चाहिए | एवं रसोई की मकान से दूरी होनी
चाहिए | रसोई को मकान में कभी भी पूर्व – उत्तर ( ईशान कोण ) में नहीं बनाना चाहिए , ये बहुत
ही अशुभ होता है एवं इसके बहुत ही घातक परिणाम हो सकते हैं |
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हो सके तो रसोई को उत्तर दिशा
में भी नहीं बनाना चाहिए | रसोई घर में चूल्हे या गैस के ऊपर छज्जा, बीम, पट्टी नहीं होनी चाहिये ये शुभ नहीं रहता है | रसोई घर में चूल्हा जमीन पर
स्थाई रूप से बनाना हो तो दक्षिण दिशा के
भाग में उत्तर की ओर देखता हुआ बनाना
चाहिये | रसोई की दीवारों में गुलाबी
रंग अच्छा रहता है |
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कुकिंग स्टोव, गैस का चूल्हा या कुकिंग रेंज रसोई घर के दक्षिण
पूर्वी कोने में होना चाहिए| यह स्टोव इस तरह से रखा जाना
चाहिए जिससे की खाना बनाने वाला व्यक्ति, खाना बनाते वक्त
पूर्व का सामना करे.
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पानी के भंडारण, आर ओ,
पानी फिल्टर और इसी तरह के अन्य सामानों के लिए जहा पानी संग्रहीत
किया जाता है, उपयुक्त
जगह उत्तर पूर्व दिशा हें.
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पानी के सिंक के लिए जगह उत्तर पूर्व में होनी चाहिए.
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बिजली के सामान के लिए, दक्षिण पूर्व या दक्षिण दिशा है.
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फ्रिज पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण पूर्व या दक्षिण
पश्चिम दिशा में रखा जा सकता है.
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खाना पकाने में इस्तेमाल किये जाने वाली वस्तुए, अनाज, मसाले, दाल, तेल, आटा और अन्य खाद्य सामग्रियों, बर्तन, क्रॉकरी इत्यादि के भंडारण के लिए स्थान पश्चिम या दक्षिण दिशा में बनाना
चाहिए.
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वास्तु अनुसार रसोई घर की कोई दिवार शौचालय या बाथरूम के साथ लगी नहीं
होनी चाहिए और रसोईघर, शौचालय और बाथरूम के नीचे या ऊपर भी नहीं होना चाहिए.
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रसोई का दरवाजा उत्तर, पूर्व या पश्चिम दिशा में खुलना चाहिए.
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खिड़किया और हवा वाहर फेखने वाला पंखा (exhaust fan) पूर्व में
होना चाहिए, यह उत्तरी दीवार में भी लगाया जा सकता है.
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रसोई घर में पूजा का स्थान यथा संभव नहीं होना चाहिए.
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खाने की मेज को रसोई घर में नहीं रखा जाना चाहिए और रखनी पड़ती हें तो
यह उत्तर पश्चिम दिशा में रखा जाना चाहिए और भोजन करते समय चेहरा पूर्व या उत्तर
की देखते होना अच्छा है.
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रसोईघर अगर भवन के मध्य भाग में बनाया जाता है, तो वह गृहस्वामी के लिए
विभिन्न समस्याओं का सबब बन जाता है। परिवार के अन्य सदस्यों को भी निराशा और
मोटापे जैसे बीमारियों का शिकार होते देखा जा सकता है।
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रसोईघर भवन के प्रवेश द्वार के सामने नहीं होना चाहिए। फेंग्शुई कहता
है कि रसोईघर की दीवारों का रंग सफेद होना चाहिए। सफेद रंग स्वच्छता व पवित्रता का
प्रतीक है। धातु तत्व का प्रतीक है सफेद रंग, जो रसोईघर में अग्नि तत्व की मजबूत स्थिति के सहयोगी
का कार्य करता है।
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रसोईघर की दीवारों पर कभी भी लाल रंग जो कि अग्नि तत्व का प्रतीक है
या काला/गहरा नीला रंग, जो जल तत्व के प्रतीक हैं, नहीं करने चाहिएं। न ही रसोईघर
की दीवारों पर हरा रंग इस्तेमाल करें, जो कि लकडी तत्व का
प्रतीक है। रसोईघर के लिए सबसे उपयुक्त रंग हल्का पीला अथवा क्रीम है। यह रंग पाचन
शक्ति को बेहतर रखता है।
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रसोईघर कभी भी सीढि यों के नीचे न बनाएं।
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खाना बनाने के लिए चूल्हा, बर्तन साफ करने का सिंक और रेफ्रिजरेटर रसोईघर में
त्रिकोणाकार स्थिति में होने चाहिए।
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रसोईधर को संतुलित करने और वहां लकड़ी तत्व की कमी पूरी करने के लिए
खिडकी के पास कुछ छोटे पौधे लगाए जा सकते हैं।
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जहां तक संभव हो रसोईधर का दरवाजा बंद रखें।
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रसोईघर में पांचो मूल तत्वों के बीच उचित संतुलन बनाए रखें। ये पांचों
तत्व हैं- पृथ्वी, अग्नि, जल, धातु और लकडी। गैस चूल्हा व ओवन अग्नि तत्व के प्रतीक हैं। लिहाजा इन्हें
पानी के नल व रेफ्रिजरेटर के निकट नहीं रखना चाहिए।
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रसोईघर में चाकू व कैंची को दीवार पर न लटकाएं। यह चिंता व परिजनों के
बीच झगडे का कारण बनता है।
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टूटे हुए व इस्तेमाल में न आने वाले बर्तनों, बासी व अस्वास्थ्यकारक
भोजन को रसोईघर में नहीं रखना चाहिए। इन चीजों को जितना शीघ्र हो सके, रसोईघर से हटा दें।
good
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