वास्तु शास्त्र एवं वास्तुदेव की विशेषताएँ – भाग-2
6-व्यक्ति की राशि के अनुसार मुख्य द्ववार की स्तिथि
7-मिटटी की किस्म का चुनाव
8- भूखंड के आकार का चयन या चुनाव
9- भूखंड की स्तिथि का चयन या चुनाव
10-पूजा कक्ष / प्रार्थना कक्ष / उपासना कक्ष / ध्यान कक्ष
6-व्यक्ति की राशि के अनुसार मुख्य द्ववार की स्तिथि
7-मिटटी की किस्म का चुनाव
8- भूखंड के आकार का चयन या चुनाव
9- भूखंड की स्तिथि का चयन या चुनाव
10-पूजा कक्ष / प्रार्थना कक्ष / उपासना कक्ष / ध्यान कक्ष
6-व्यक्ति की राशि के अनुसार मुख्य द्ववार की स्तिथि :-
पूर्व दिशा में द्वार
- मेष राशि, सिंह राशि, धनु राशि के व्यक्ति |
दक्षिण में द्वार -
वृषभ राशि, कन्या राशि , मकर राशि के व्यक्ति |
पश्चिम दिशा - मिथुन राशि, तुला राशि , कुम्भ राशि के व्यक्ति |
उत्तर दिशा - कर्क राशि , वृश्चिक राशि के व्यक्ति |
अगर व्यक्ति की राशि के अनुसार दी गई दिशा में मुख्य द्वार नहीं लगा
सकें तो उस दिशा में कम से कम एक खिड़की तो अवश्य ही लगानी चाहिये |
मकान बनाने के लिये प्लाट या निर्माणस्थल का चयन करना:-
किसी भी भवन के लिये उसका निर्माण स्थल या प्लाट की मूल आवश्यकता होती है और इसके चुनाव में सबसे अधिक सावधानी रखनी चाहिये | निर्माणस्थल या प्लाट का चयन करते समय निम्नलिखित पक्षों पर
ध्यान दिया जाना चाहिये :-
7-मिटटी की किस्म का चुनाव -
भूमि परीक्षण
भूमि का परीक्षण करना आवश्यक है | ये दो प्रकार से होता है |
१. भूखण्ड के उत्तर दिशा के कोण में लगभग डेढ़ फुट गहरा व चौड़ा गड्ढा
खोदें और उसमे से सारी मिट्टी निकालकर उस निकाली गयी मिट्टी से गड्ढे को पुनः भरें
| यदि गड्ढा भरने पर मिट्टी शेष बचती है अर्थात अधिक निकलती है तो वो भूमि
अच्छी है | ऐसी भूमि पर भवन निर्माण बहुत शुभ फलदायी होगा |
यदि मिट्टी शेष नहीं बचती और पूरी पड़ जाती है तो भूमि मध्यम होगी |
इस पर भी भवन निर्माण किया जा सकता है | अब
यदि मिट्टी न तो शेष बचती है और नाही पूरी पड़ती है बल्कि कम पास जाती है तो वो
भूमि भवन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है |
२. जिस भूमि का परीक्षण करना हो, उसमे डेढ़ फुट गड्ढा खोदकर उस गड्ढे में ऊपर तक पानी
भर दीजिये | और फिर दो मिनट बाद देखिये यदि पानी जितना भरा
था उतना ही हो तो भूमि भवन निर्माण के लिए अतिउत्तम है | यदि
पानी आधा बचता है तो भूमि पर निर्माण कराया जा सकता है | परन्तु
यदि गड्ढा पूरा सूख गया है और बिलकुल नहीं बचा है तो ऐसी भूमि पर भवन निर्माण
बिलकुल भी नहीं करना चाहिए |
चिकनी या काली मिटटी निर्माण स्थल के लिये ठीक नहीं रहती है |
बड़े गोल पत्थरों वाले , दीमकों की बांबी वाले , अथवा
जहाँ हत्या हो चुकी हो ऐसा स्थान ,
तथा जहाँ शव को
दफनाया जा चुका हो , जहाँ की
मिटटी ढीली हो ऐसा स्थान , या जिसमें मिटटी का भराव किया गया हो,
इस प्रकार के स्थानों से बचना चाहिये | ये स्थान मकान बनाने के
लिये शुभ नहीं रहते हैं |
२. स्थान व् वातावरण का चुनाव- निर्माणस्थल की सतह समान
स्तर की होनी चाहिये , अगर सतह ढालू हो तो वो वह उत्तर और पूर्व की दिशा
या उत्तर – पूर्वी
दिशा में होनी चाहिये | निर्माण स्थल के पास में बड़े
पेड़ जैसे की पीपल, बरगद, इमली , आम आदि नहीं होने चाहिये |
निर्माण स्थल या प्लाट की दूरी इन पेड़ों
से पर्याप्त होनी चाहिये | प्लाट में पर्याप्त मात्रा में भूजल होना चाहिये |
एवं प्लाट की भूमि में उपजाऊ मिटटी
एवं घास से आच्छादित होनी चाहिए | निर्माणस्थल या प्लाट ,
मंदिरों , आश्रमों , स्कूलों,
कालेजों, शादी
समारोह स्थलों से दूर होना चाहिये |
विष्णु मंदिर के
पीछे या दुर्गा मंदिर के बांयी
ओर भी निर्माण स्थल
या आवास अच्छा नहीं रहता है | शिव मंदिर से मकान या निर्माणस्थल की दूरी कम से कम ५० मीटर की
होनी चाहिये | पहाड़ी के दक्षिण या पश्चिम में भी निर्माण स्थल या
प्लाट का होना अच्छा नहीं होता है |
8- भूखंड के आकार का चयन या चुनाव –
भवन के लिए भूखण्ड के आकार का चयन-
भवन निर्माण के लिए विभिन्न आकार के भूखण्ड मिलते हैं | वास्तुशास्त्र अनुसार
विभिन्न आकारों के भूखण्ड के गुण , दोष एवं फल का विचार किया
जाना अत्यन्त आवश्यक है |
शुभ फलदायक आकार के भूखण्ड
१. वर्गाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की लम्बाई और चौड़ाई बराबर हो
और उसके चारों कोण समकोण हों तो उस भूखण्ड को वर्गाकार भूखण्ड कहा जाता है | यह भूखण्ड भवन निर्माण के
लिए सर्वश्रेष्ठ होता है | इस भूखण्ड पर भवन निर्माण कर
निवास करने से धनलाभ व आरोग्य वृद्धि होती है |
२. आयताकार भूखण्ड :-जिस भूखण्ड की चार भुजाएं हों, आमने-सामने की भुजाएं
बराबर हों तथा चारों कोण समकोण हों तो उस भूखण्ड को आयताकार भूखण्ड कहा जाता है |
यह ध्यान रखें कि इस प्रकार के भूखण्ड की लम्बाई, चौड़ाई के दुगने से अधिक न हो | यह भूखण्ड भवन
निर्माण के लिए श्रेष्ठ भूखण्ड है | इस भूखण्ड पर भवन
निर्माण कर निवास करने से धन व आरोग्य वृद्धि होती है तथा सर्व कार्य सिद्ध होते
हैं |
३. वृत्ताकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार एक वृत्त के आकार का
हो तो उसे वृत्ताकार भूखण्ड कहा जाता है | यह भूखण्ड भी भवन निर्माण के लिये शुभ फलदायक होता है
|
४. चतुर्भुजाकार भूखण्ड :- ऐसा भूखण्ड जिसके आमने-सामने वाले कोण
बराबर हों, चतुर्भुजाकार भूखण्ड कहलाता है | इस प्रकार के
भूखण्ड पर भवन निर्माण करके रहने से शुभ फल मिलते हैं |
५. षटकोणाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की छह भुजाएं हों, और सारी भुजाओं की लम्बाई
बराबर हो, तो उस भूखण्ड को षटकोणाकार भूखण्ड कहा जाता है |
इसपर भवन बनाकर रहने से उन्नति होती है |
६. अष्टकोणाकार भूखण्ड :- जिसकी आठ भुजाएँ हों और आठों भुजाओं की
लम्बाई बराबर हो | इसपर रहने से भी शुभता आती है |
७. गोमुखाकार भूखण्ड :-- जिस भूखण्ड का आगे का भाग छोटा और पीछे
का भाग बड़ा हो तो ऐसे भूखण्ड को गोमुखाकार भूखण्ड कहा जाता है | इस प्रकार के भूखण्ड पर
आवासीय भवन निर्माण तो शुभ होते हैं परन्तु व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए अशुभ
होते हैं |
८. सिंहमुखाकार भूखण्ड :- जिसका सामने का भाग बड़ा हो और पीछे का भाग
छोटा हो | यह भूखण्ड व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए तो उत्तम है परन्तु आवास के लिए
अशुभफलदायी है |
९. काकमुखी भूखण्ड :- जो भूखण्ड आगे से संकरा और पीछे से चौड़ा
होता है | ये भी भवन निर्माण के लिए अच्छा होता है |
अशुभ फलदायक भूखण्ड--
१. त्रिभुजाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की तीनों भुजाएँ बराबर होती
हैं |
२. चक्राकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की आठ से ज्यादा भुजाएँ हों
और वह वृत्ताकार भी न हो |
३. शकटाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार बैलगाड़ी की तरह होता
है |
४. मृदंगाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार ढोलक के आकार का होता
है |
५. पंखाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार हाथ के पंखे के सामान
हो |
६. सर्पाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार सूप के आकार होता है |
७. धनुषाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार धनुष के आकार का होता
है |
८. अंडाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार अंडे के जैसा होता है
|
९. विषमबाहु भूखण्ड :- जिस भूखण्ड की सभी भुजाएं भिन्न-भिन्न
नाप की हों |
१०. कुम्भाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार घड़े के समान हो |
११. अर्धवृत्ताकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार अर्धवृत्त के आकार का
हो |
१२. मुसलाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार अर्धवृत्ताकार होकर
मूसल के आकार में लम्बा हो |
१३. नलाकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार एक चतुर्भुज के आकार
का हो, इसके चारों कोण समकोण हों एवं भूखण्ड की लम्बाई उसकी चौड़ाई के दुगने से
अधिक हो |
१४.चिमटाकार भूखण्ड:- जो भूखण्ड एक ओर से छोटा और दूसरी ओर से
बड़ा अर्थात चिमटे के आकार का हो|
१५. डमरूकार भूखण्ड :- जिस भूखण्ड का आकार डमरू के आकार का होता
है |
·
भूखंड का आकार वर्गाकार या आयताकार
होना शुभ होता है आयताकार होने की
स्तिथि में चौड़ाई का लम्बाई से अनुपात
१:२ का होना चाहिये |
·
उत्तर , दक्षिण की तुलना में पूर्व व् पश्चिम का विस्तार अधिक
होना चाहिये , परन्तु
वर्गाकार भूखंड में चारों ओर खाली स्थान
छोड़ सकें इतना बड़ा भूखंड होतो इससे अच्छा
या बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है , ऐसा भूखंड अति उत्तम होता है |
·
गौमुखी भूखंड केवल दक्षिण
या पश्चिम मुखी ही ठीक होते हैं| बाकी सभी आकारों के भूखंड
शुभ नहीं होते हैं |
9- भूखंड की स्तिथि का चयन या चुनाव :-
·
जिस भूखंड या प्लाट के चारों ओर सड़क हो वह भूखंड अति उत्तम होता है |
·
ऐसे भूखंड जिनके पूर्व और पश्चिम में सड़क हो , सड़क और भूखंड की सतह
पश्चिमी दिशा
·
की तुलना में पूर्वी दिशा में नीची हो तो शुभ रहता है |
·
भूखंड जिनके उत्तर व् दक्षिण
दिशा में सड़क हो ,एवं भूखंड और सड़क की सतह उत्तर की ओर दक्षिण की तुलना
में नीची हो तो शुभ रहता है |
·
ऐसे भूखंड जिनके पूर्व में सड़क हो
तथा भूखंड और सड़क का ढाल ऊतर – पूर्व की ओर हो , भूखंड की सतह
अधिक ऊंची हो और पश्चिम की ओर अधिक भरा हुआ स्थान या बड़ी-बड़ी इमारतें
हों तो शुभ होता है |
·
ऐसे भूखंड जिनके उत्तर में सड़क हो , भूखंड और सड़क का ढाल
उत्तर- पूर्व की ओर हो तथा भूखंड की सतह अधिक ऊंची हो और दक्षिण की ओर भरा हुआ
स्थान या बड़ी – बड़ी
इमारतें हों तो शुभ होता है |
·
सड़क और भूखंड की सतहें दक्षिण और पश्चिम की तुलना में उत्तर और पूर्व
की ओर नीची होनी चाहिये , पश्चिम और दक्षिण में ऊंची सतह के भूखंडों का होना
ठीक रहता है |
·
उत्तर दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर बहता हुआ कोई नाला या नदी या सोता होतो
यह एक आदर्श स्तिथि होती है एवं
ऐसा भूखंड अति शुभ रहता है |
·
दक्षिण या पश्चिम दिशा में
सड़क का होना व्यापारियों के लिये अति शुभ रहता है एवं ऐसा भूखंड व्यापारिक दृष्टी
से अति शुभ रहता है |
·
उत्तर एवं पूर्व मुखी भूखंड रहने के लिये अति शुभ रहते हैं इन भूखंडों में प्रचुर मात्रा में प्रकाश एवं
वायु मिलाता है जिससे मकान में रहने वाले लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहता है |
·
भूखंड औधोगिक क्षेत्र से दूर होना चाहिये जिससे उसका प्रदुषण लोगों को
प्रभावित नहीं कर सके |
·
भूखंड के अन्दर उत्तर – पूर्व का किनारा सबसे नीचा एवं दक्षिण – पश्चिम का
किनारा सबसे ऊंचा होना चाहिये , अति शुभ रहता है |
10-पूजा कक्ष / प्रार्थना कक्ष / उपासना कक्ष / ध्यान
कक्ष:-
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा घर की दिशा, उसकी जगह,
किस धातु से बना है मंदिर आदि.. और भी कुछ नियम होते हैं। जो वास्तु
के अनुसार बने घर में हमें सुख, समृद्धि एवं मनचाहे धन की
प्राप्ति होती है। इसीलिए आजकल लोग वास्तु शास्त्र के अनुसार घर बनवाना ज्यादा
पसंद करते हैं।
·
पूजाकक्ष हमेशा उत्तर – पूर्व (ईशान ) दिशा में
ही बनाना चाहिये यहाँ पर पूजा कक्ष सर्वोत्तम रहता है |
·
देव मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा में और और पूजा करने वाले का मुख पूर्व
दिशा में होना एक आदर्श स्तिथि होती है |
·
देव मूर्ति का मुख उत्तर और पूर्व दिशा में भी कर सकते हैं परन्तु
देवमूर्ति का मुख दक्षिण दिशा में नहीं करना चाहिये उससे पूजा करने वाले को उत्तर
दिशा में मुख करके पूजा करनी पड़ती ये स्तिथि शुभ नहीं रहती है | पूजा का स्थान बीम/छज्जा/
या पट्टी के नीचे तथा सीढ़ियों के नीचे नहीं होना चाहिये |
·
बैडरूम या शयन कक्ष में भी पूजा का स्थान नहीं होना चाहिये अन्य
धर्मों के व्यक्तियों के लिये भी पूजा कक्ष , प्रार्थना कक्ष , ध्यान कक्ष ,
उपासना कक्ष आदि भी उत्तर
-पूर्व किनारे पर ही बनाना चाहिये एवं अगर किसी भी देवता या भगवान्, ईश्वर की मूर्ति स्थापित करनी हो तो वो भी कभी भी दक्षिण की तरफ मुख करके
नहीं लगानी चाहिये एवं पूजा या प्रार्थना करने वाले का मुख उत्तर की ओर नहीं होना
चाहिये ये स्तिथि शुभ नहीं रहती है |
·
मुसलमान भाइयों को भी अपना उपासना कक्ष उत्तर – पूर्व में ही बनाना
चाहिये , हालाँकि वे मूर्ति की उपासना नहीं करते हैं परन्तु भारत में वे परमात्मा , खुदा की
प्रार्थना पश्चिम की ओर मुख करके ही करते
हैं क्योंकि उनकी एकाग्रता का केंद्र
मक्का भारत के पश्चिम में है |
·
उन देशों में जहाँ से मक्का पूर्व दिशा में पड़ता है वहां के लोग
पूर्व दिशा में मुख करके खुदा की इबादत करते हैं , एवं जहाँ से मक्का उत्तर
दिशा में पड़ता है वो लोग उत्तर दिशा में मुख करके इबादत करते हैं तथा जहाँ से मक्का मदीना जिस दिशा में पड़ते हैं
वहां से उसी दिशा में मुख करके
खुदा की उपासना या इबादत करनी चाहिये |
·
पूजा कक्ष , उपासना कक्ष , प्रार्थना कक्ष ,
ध्यान कक्ष को हमेशा भूमि स्तर (ग्राउंड फ्लोर ) पर ही बनाना
चाहये ये शुभ रहता है |
·
पूजा घर
के पूर्व या पश्चिम दिशा में देवताओं की मूर्तियां होनी चाहिए।
·
पूजा घर
में रखी मूर्तियों का मुख उत्तर या दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।
·
देवताओं
की दृष्टि एक-दूसरे पर नहीं पड़नी चाहिए।
·
पूजा घर
के खिड़की व दरवाजे पश्चिम दिशा में न होकर उत्तर या पूर्व दिशा में होने चाहिए।
पूजा घर के दरवाजे के सामने देवता की मूर्ति रखनी चाहिए।
·
पूजा घर
में बनाया गया दरवाजा लकड़ी का नहीं होना चाहिए।
·
घर के
पूजा घर में गुंबज, कलश इत्यादि नहीं बनाने चाहिए।
·
वास्तु
के अनुसार जिस जगह भगवान का वास रहता है, उस दिशा में शौचालय, स्टोर इत्यादि नहीं बनाए जाने
चाहिए।
·
पूजा घर
के ऊपर या नीचे भी शौचालय नहीं बनाना चाहिए।
·
वास्तुशास्त्र
के अनुसार बेडरूम में पूजा घर नहीं बनाना चाहिए।
·
पूजा घर
के लिए प्राय: हल्के पीले रंग को शुभ माना जाता है, अतः दीवारों पर हल्का पीला रंग
किया जा सकता है।
·
फर्श
हल्के पीले या सफेद रंग के पत्थर का होना चाहिए। इन कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान
में रखकर पूजा घर बनाया जाना चाहिए। जो हमें सुख-समृद्धि के साथ-साथ हमारे जीवन
को खुशहाल और हमें हर तरह से संपन्न बनाते है।
पूजा घर के दरवाजे के सामने देवता की मूर्ति रखनी चाहिए।
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